कहानी ! इस शब्द के साथ ही
अनायास, जहन में दादा -दादी, नाना - नानी, अम्मा, अम्मी, मम्मी की तस्वीर सामने आ जाती हैं और माँ की आँचल से ढकी गोद, उसकी सुकून के साथ साथ उसकी सुनाई कहानी याद आ जाती है !
चाचा-चौधरी, चार्ली -चैप्लीन, गोनू झा, विक्रम-वेताल, तेनाली रामा, अकबर बीरबल, स्वामी, टिनटिन, आम्ची, गजपति कुलपति, पेटू, पम्पकिन, जेराल्ड एंड पिग्गी, हैरी पॉटर सरीखे और कितने ही कथा - चरित्र आंखों के सामने कितनी ही कहानियों के माध्यम से आँखों के सामने उभरने लगते हैं. हिंदी साहित्य के प्रेमचंद्र, बंगला के रविंद्रनाथ टैगोर, शरत चंद , तेलुगु कथाकार, सर्व श्री गुरजदा वेंकटा प्पा राव, तमिल साहित्य के अग्रणी कथाकार अशोक मित्रं, इंदिरा पार्थसारथी, मिथिला के खट्टर काका जैसों की कहानिओं के बीच बड़ा हुआ बचपन दिलो दिमाग में रोमांच के फ्लैशेस निर्मित करना शुरू कर देते हैं.
इतना ही नहीं भारतीय परिसीमा के बाहर की कहानिया, मसलन, जर्मन, फ़्रांसीसी, अंग्रेजी, स्पेनिश, रुस्सियन, मिस्त्र की वो सभी कहानिया जिनोह्णे हमें किसी न किसी रूप में किसी न किसी समय छुई है वो याद आने लग जतिन हैं.
यौवन की दहलीज पर कदम पड़ते कोंडके और राम जैसे कथाकार भी जगह पा ही लेते हैं.
लोग अक्सर चार्ली-चैप्लीन के मूक अभिनय में छुपी जीवन सत्यों को, व्यंग को हास्य के साथ आनंद लेते सुने जाते हैं , साहित्य जगत के कथाओं का मंचन नाट्य रूप में, नृत्य रूप में प्रसिद्ध रहा है, चल चित्र (सिनेमा) : बोल्ल्य्वूड, हॉलीवुड, टॉलीवूड, तो कहानी को एक चमत्कारिक रूप देने में देश काल से आगे बढ़ कर बड़ी भूमिका निभाई है, अब जब OTT का जमाना आ गया तो ये रुपहले परदे से फिसल कर हमारे मोबाइल स्क्रीन पर आ गए. और ऐसे में चिरायु टीवी सेट और उन पर चल रहे पॉपुलर सोप ओपेरा (कहानी के ही लोक प्रिय रूप) पीछे छूट गए। आज तो कहानी हर की हथेली में है, बल्कि अब मायें भी अब सर पर हाथ की थाप छोड़ हाथ को मोबाइल में उलझा लिया है, उनका भी काम अब मोबाइल के बिना नहीं चलता। कहीं न कहीं माँ की ममता के एहसास होने में भी फरक पड़ा है - एहसास लेने वाले बच्चों और एहसास कराने वाली माँ दोनों ही इसकी वजह हो सकती हैं
कहानी की कड़ी को और आगे बढ़ाएं तो कहानिया वो भी कम मजेदार नहीं होतीं थीं या हैं जो चाय की चुस्की के साथ सड़कों - चौराहों के किनारे फुट पाथ पर या ईंटों की टल्लियों पर बैठ कर दो दोस्त या फिर दोसतों की हुजूम या गर्ल फ्रेंड बॉय फ्रेंड, बैठे एक दुसरे को सुना रहे होते हैं, गुप् चुप या दबे जवान होठों के बीच मर्म को समझते या फिर हंसी ठहाकों से आह्लाद करते, अश्रु धाराओं में लिपटी कांपती इमोशंस को शेयर करते; कभी रोमांच तो कभी रोमांस, कभी बकैती तो कभी संसार की गूढ़तम चर्चा -- कौन भूल सकता है कहानियों का ये सिलसिला और उसके ऐसे रंग !
कहानी वो भी हैं जो रोज सुबह ख़बरों में, अख़बारों में और आज कल मोबाइल स्क्रीन पर बड़ी या इन शौर्ट्स जैसे अप्प्स पर पढ़ ली जातीं हैं, वाटस आप फैक्ट्री भी काम नहीं है ख़बरों की कहानिओं की दुनिया में, जायका इतना कि कहानी ही छुप जाती हैं, उनका मर्म लुप्त हो जाता है - वो ख़ुशी की कहानी हो या दुःख दर्द की या फिर मौत की ही क्यों न हो। या यूँ कहें किसी को मर्म की काहे की चिंता ! कहानी पॉलिटिक्स की हो या आईपीएल की, धर्म भीरुओं की हो या धर्म के सौदागैरों की - कहानिया तो बस हैडलाइन हैं, पाठकों को सेदूस करने के लिए, नशा पैदा करने के लिए - यहाँ तक कि भुख्मरी, रेप ,अकाल जैसी दुर्दांत बाकया भी हमें झकझोर नहीं पातीं हैं बल्कि वो ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए मसाला पड़ोसती हैं ! फिर कहानी, संगीत का रैप म्यूजिक हो कर रह जाती, ग़ज़ल नहीं बन पातीं , कुल मिलाकर, अधिकांश के दिमाग की सीज़निंग हो चुकी है जिसकी जगह अब संडासों से भी परहेज नहीं रखती।
इन सतही कहानियों के रूप में हम इतने डूब चुके हैं रम चुके हैं कि कहानी का वो ख़ालिश रूप ही नदारद हो गया है।
जीवन, अपना जीवन भी तो एक कहानी ही है - उस कहानी से क्या हमने खुद को रु बा रु होने का मौका दिया क्या?
एक बीज से एक पौधे, पौधे से एक पेड़, पेड़ से महाब्रिक्छ की यात्रा, सभी ने जिया है और हम भी जियेंगे, इंशाअल्लाह ! जिंदगी जो हमने जिया है, जी रहे हैं या जीने की ख्वासिस में परेशां हैं वो भी तो एक कहानी ही है - इस यात्रा का रोमांच हो या कीड़े भर की ज़िन्दगी, उसका सौंदर्य, उसकी आत्मा, उसका रूप, उसका रंग, उसकी संगीत, भाई कीड़े की ज़िन्दगी में भी ये सब होते हैं -- क्या जीवन के कहानी का यह रूप हमने पढ़ा या लोगों के पढ़ने के लिए कुछ छोड़ा भी - भाई डाटा और डॉक्यूमेंटेशन का जमाना है, टेक्नोलॉजी भी है, तो करना तो पड़ेगा
अपनी बाल्य अवस्था जिसको हमने सुनकर ही जाना वो हमारे लिए श्रुति ही है, हमारी बिटिया को आज २४ बर्ष बाद ये बात तभी याद है जब ये उसे बताया गया कि उसके पापा उसके जन्म के ६ दिन के बाद ही मिल पाए क्योंकि छुट्टी नहीं मिली थी और वो इस लिए कि वो थोड़े पहले आ गयी क्योंकि उसे मामा पापा के एनिवर्सरी वाले दी ही आना था या फिर ये भी कि कुछ महीने बाद जब पापा आये और तब वो बड़ी हो गयी थी तो उसने मामा के गोद से छलांग लगा दी थी पापा के गोद में आने के लिए !! एक पिता को तभी एहसास हुआ ऐसे नैसर्गिक फेविकोल जोड़ की !! अद्भुत कहानी लिखी जाती है ऊपर वाले के हाथों !! प्रेरणा भी ऐसी ही आती है जीवन में !!!
बाल्यावस्था के उस श्रुत संगीत और सौंदर्य को सुना जाना भी जीवन का एक बड़ा ही प्यारा पहलु है. as a बालक हम ये कैसे जाने कि मेरे बचपन में एक नहीं कई नाम दिए गए - पुटुस , दिलखुश, बउआ, - कोई मेल ही नहीं एक दुसरे से - प्यार से जिसको जो लगा बुला डाला और नाम हो गया -- हर नाम में प्यार का पुट है. ऐसे ही बिटिया को बाबू, अंशु, अंशुमान, कुन्ने - मामा, दादा दादी, नान नानी से लेकर परोस की केरल वासी पिता माता तुल्य अंकल आंटी ने अपने अपने हिसाब से प्यार के अलग अलग नाम दिए -- जो उनके जुबान पर चढ़ गयी वही ! - थोड़ी तफ्तीश के बाद पता चला, बचपन की बात्सल्य की कहानिओं की कोमलता हमें जीवन भर स्पर्श करतीं रही हैं, हमें ऊर्जा देती रही है और मुसीबतों में या अकेलेपन में यह बताती रही है की तुम अकेले नहीं हो ! इस प्रौढ़ा व्यवस्था में वो बाल्यावस्था संजीवनी घोलती है, यौवन और प्रौढ़ अवस्था के धक्कम पेल में , रेलम पेल में अमृत घोलती है रही हैं। फिर युवावस्था जहाँ अक्सर ज़िन्दगी के थपेड़ों से गिरना पड़ना, लुढ़कना लगा रहा, हमारी जीवन यात्रा में नए चैप्टर्स जुड़ते रहे , और, इस दौरान, एकयुग बीत गया सा लगता है, जिसे आम बोल चाल की भाषा में जनरेशन गैप कहा जाता है. यह काल एक व्यक्ति के जीवन की कहानी का वह पहलू है जो सबसे ज्यादा रोमांच देता है, मसाला देता है !
जिंदगी दौड़ती रहती है पन्ने पलटते रहते हैं, फिर आती है कहानी की वो दौर जब हम रोज़ी रोटी, रोज़ मर्रा की जरूरतों से रु बा रु होते कई जिम्मेदारिओं के साथ जिंदगी जीने का सफर तय करते है, जीने का स्वांग भी कर रहे होते हैं, जिंदगी हमारे चेहरे पर मुखौटा दाल देती है और हम बहुरूपिये, कई रूपों को जीने लगते हैं ी बस थोड़ी दूर और, थोड़ी ख़ुश - थोड़ा गम, कभी टूटते, सब्र संजोते, इतने पर भी अरमानो को पालते, हर शाम
महफ़िल भी जमाते - चाय हो या ज़ाम ! और इस तरह, हर सुबह, उगते सूरज के साथ जिंदगी की कहानी को बढ़ाते चलते है.
हम कहानी के हर हिस्से के हिस्से रहे, किरदार रहे लेकिन उसी कहानी को, हम ही नहीं पढ़ पाए और न ही पढ़ने की कोशिश की कभी, बिट्स एंड पीसेज में, अलबमों ने कुछेक पहलु, कुछेक मोमेंट्स को कैप्चर जरूर किया, हमने फेस बुक पर और इधर से इंस्टा पर शेखियां भी काफी बघारी, घर में भले आंसू रोये लेकिन वहां दिखे तो हंसी ही और ऐसी हसीं ज़िंदगो कि हर कोई जल कर मर जाये। मजे की बात मारने वाले, मरने वाले के पोस्ट किये हुए अपने से ज्यादा हंसी ज़िन्दगी से खुद भी मारा जा रहा ! अजीब zero sum game की जिंदगी चल पड़ी है !! ऐसी भी इस्थिति अक्सर आई कि, दुखी होने पर दुःख से ज्यादे दुख के कटोरे ले कर अपनों से नहीं, घर में नहीं, घर से बाहर, अपने लिए साहनुभूति या अटेंशन पाने की कोशिश की। लेकिन खुद को खुद का कभी भी एहसास करने की कोशिश नहीं हुई !
अचानक जीवन के ५५ के पाडवो पर ईश्वरीय प्रेरणा ने प्रेरणा दी कि "बुड्ढे होने से बच लो" लेकिन बचोगे कैसे ?? ऐसा करो, लिख तो ठीक ही थक लेते हो, सो, खुद की जीवन के करकट से कुछ कोयले, तिजोरी से कुछ मोती या कुछ हीरे जवाहरात को टटोलो, बिताया जीवन और बीती कहानी की कहानी कह डालो, लेकिन थोड़ा तरीका अपने पूर्वजों से अलग रखो काहे कि मोटी आत्मकथा पढ़ने की जब तुम्हारे [पास टाइम नहीं है तो दुसरे क्या अपने क्या टाइम निकल पाएंगे ! तुमने जो देखी, अगले ने देखी, जिसने भी देखी - सभी ने अधूरी देखी, एक आध पहलु किसी ने देख भी ली तो वो अधूरी ही रही - सो इस से पहले की ये आधे अधूरे पहलु या टुकड़े, अस्थिओं के साथ बह जाएं, दफ़न हो जाएं- छोटे छोटे लेखनी में इनको पीडो डालो ----
मेरा जीवन, एक कहानी, उसका लिखित कहानी रूप " एक कहानी जीवन भी" पेशे खिदमत है, ईश्वरीय प्रेरणा की प्रेरणा से !!
उम्मीद है छोटी - छोटी, नन्ही - नन्ही, अपनी - परायी, इसकी - उसकी, दिन - दुनिया की, कुछ पारिवारिक, कुछ सामाजिक, कुछ व्यावहारिक, कुछ शहर की, कुछ कस्बे की, कुछ गांव की, खेतों की. खलिहानो की, विज्ञान की, अर्थव्यवस्था की, इंडस्ट्री की, कोपोरट की, संस्थाओं की, संस्थाओं के व्यवस्थापकों की, देश की, विदेश की लोगों की, युवाओं की, वृद्धों की, पुरुषों की, महिलाओ की, अपने जीवन से उद्धृत अंश "एक कहानी जीवन भी" पर पढ़ना पसदं करेंगे। उम्मीद है कुछ बेहतर कहानिया आप से भी पढ़ने को मिलेंगी - इस पोस्ट के जवाब में एक छोटी कहानी एक छोटा अनुभव अवश्य लिखें
आपका साथ इस यात्रा में रहे !
Sir
ReplyDeleteNeither I have such knowledge nor suitable words to say that your way of saying facts of life in simple words is great. Your words and the way you describe, touches soul. Regards
Santosh Sir, Gratitude for your kind words and spending time to go through and post. You are a wizard in your right. I shall remember you for the first post on my blog. it's a treasure !
Deleteगर्मियो की छुट्टी का इंतजार इस्लीए नहीं कि स्कूल नहीं जाना पड़ेगा बालकी इसी की गली के नुक्कड़ पर बनी छोटी सी दुकान से कॉमिक्स किराये पर लानी है एक साथ 20-20 कॉमिक्स लाना और एक ही दिन में पूरी पढ़कर लौटाने जाना और फिर नई लेकर आना .... मोहल्ले की किसी संभ्रांत परिवार के यह लिटिल मास्टर वीडियो गेम होना और गेम में सिर्फ एक मौका मिल जाए उसके लिए घंटो उसी के यहां बैठे रहना... सुबह जल्दी उठाकर पिताजी के साथ घूमने जाना..इसलिए नहीं की स्वास्थ्य सही रहे बालक इसीलिये की माचिस के खाली खोल बटोर ले और उनसे गद्दी खेले...
ReplyDelete7-7 दिन बिजली दिन और रात का होना..
मां का बीजने से हवा करना... रात को सोने से पहले छत को धोना... रविवार के दिन रंगोली से दिन की शुरुआत करना और दिन किसी भी बॉलीवुड फिल्म का सिर्फ एक घंटे का प्रसारण देखना.. आदि आदि... सब कुछ याद है...
बदला कुछ नहीं है बस बदला है हमारा भूतिकता में जीना और भौतिक सुख साधनो का बटोरना.. बाकी चर्चा कभी मिलने पर... ☺️☺️
क्या खूब सिलसिला बढ़ाया है आपने !! बहुत खूब !! धन्यवाद !! मलाई, मिश्री, रबड़ी, पेड़े, दही , लस्सी, और बाल गोपाल , राधा रानी पर कुछ नहीं बोलेंगे !! आप के यहाँ तो हर बच्चा ही लड्डू गोपाल होता है अपने घर का !!
Deleteसुरुचिपूर्ण सारगर्भित सुंदर शब्दचित्र । राजीव जी की कलम से हम और ऐसे ही शब्दचित्रों की उम्मीद रखते हैं। आशा है मिथिला की भूमि से इस युग के प्रणम्य देवता जैसी कृति का आप हम पाठकों से परिचय कराएंगे।
ReplyDeleteसर आपका आभार ! लेकिन आप कवि हैं तो इसका क्या मतलब, आप छोटे भाई को ऐसे खीचेंगे ! बस इस छोटी शुरुआत पर आप जैसे विद्य और कवि हृद का आशीर्वाद मिल गया मेरे लिए तो अमृत है अमृत ! प्रोत्साहित करते रहेंगे !
Deleteअद्भुत है आपकी शैली सर।
ReplyDeleteहम सब एक न एक कहानी का हिस्सा ही तो हैं,
एक सवाल है, क्या आप को भी कभी लगा की कोई कहानी अधूरी रह गयी जीवन में??
मेरे अनुसार, रचयता कभी कहानी अधुरा नहीं छोरता, कहानी ही रूक जाती है।
दानिश भाई आप तो मेरे अज़ीज़ छात्र रहे हैं , बड़े नजदीक से देखा है आपने मुझे और कोई ऐसा मौका नहीं जब आपने मुझे प्रोत्साहित नहीं किया हो / ईश्वर की कृपा से ही ऐसा भाई मिलता है !
Deleteदेखता हूँ खुदा की रहमत कितनी रहती है, कब तक रहती है - कहानी तो पूरी होनी ही चाहिए। जीवन में अगर कुछ अधूरा रह भी जाये तो यही समझना चाहिए कि ईश्वर ने उतना ही तय किया था ! इस यात्रा में साथ रहे, आनंद आएगा !! धन्यवाद, शुक्रिया !!
सर, आपके पास जीवन के अद्भुत अनुभव का संग्रह है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्याख्या जीवन की...जैसी किसी यात्रा का वर्णन ।
Bhaut khoob sir bachpan yaad aagaya .
ReplyDeleteशब्दों का चयन जिस प्रकार भावनाओ के परिप्रेक्ष्य में किया गया है वो बिल्कुल अद्भुत है।
ReplyDeleteशब्द इतनी सरल, फिर भी इतने उत्कृष्ट ढंग से साथ बुने हुए हैं, कि उन्होंने मुझे वापस उस समय में पहुंचा दिया जब जीवन और सोच स्पष्ट और धुली हुआ करती थी।
ReplyDeleteबहुत ही सरल, सुंदर और मार्मिक ढंग से आपने अपनी कहानी कही है.
ReplyDeleteBahut sundar. 👌Bachpan se aaj tak ke galiyaron me tahlaa diyaa aapne. Yah lekh kahaniyon ke bahut hi sundar aur mahatwapoorn pahluwon ki choota hai. Kahaaniyon ke ek alag hi aayam ko tatolta hai. Kahaaniyon ki sociology, darshan, uttar aadhunik itihaas aur manowigyaan par gahan tippaiyon sahit. Bahut sundar aur rochak. Kahaaniyon kee prateeksha rahegi.👏🙏
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